लेखक अजीत कुमार
एक्सेल रिबन से पहले क्या था
एक्सेल के अंतर्गत रिबन का प्रचलन एक्सेल 2007 के बाद से उदित हुआ। उसके पहले वाले एक्सेल के वर्शन में रिबन का प्रचलन नहीं था। उसकी जगह कमांड मेंनू होते थे। उन मेनू को हम कस्टमाइज कर सकते थे।
रिबन क्यों जरूरी है
माइक्रोसॉफ्ट कंपनी ने रिसर्च के पश्चात अनुभव किया कि ज्यादातर यूजर एक्सेल के बहुत सारे ऐसे फीचर है जो उचित रूप से प्रकट नहीं होने के कारण ऐसे मेनू में छिपे रह जाते हैं जिसके कारण एक्सेल के सभी पक्षों और उपयोगिताओं का यूज़र को एहसास नहीं हो पाता है। इस कमजोरी को समझने के पश्चात माइक्रोसॉफ्ट कंपनी ने समस्या के निदान के लिए अच्छा खासा रिसर्च किया और उसके बाद एक्सेल 2007 वर्शन में रिबन का प्रयोग आरम्भ हुआ।
रिबन क्या है
माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल के रिबन के अंतर्गत कई सारे टैब होते हैं और उन टैब के भीतर कई सारे ग्रुप होते हैं। कहने का अर्थ यह है कि एक टैब के भीतर कई सारे ग्रुप्स होते हैं और प्रत्येक ग्रुप के भीतर कई सारे बटन होते हैं। एक या उससे अधिक बटन को भी सेपरेटर की मदद से अलग कर दिया जाता है। यह सेपरेटर एक खड़ी रेखा के रूप में दिखाई देती है। बने बनाये टैब को देखकर यह सब बातें सरलता से समझी जा सकती है।
रिबन को कस्टमाइज करने का अर्थ
रिबन के भीतर उपलब्ध टैब के अतिरिक्त नये टैब को जोड़ा जा सकता है और इसी तरह बने बनाये टैब को हटाया भी जा सकता है। यहाँ तक कि सारे टैब्स को हटा कर बिल्कुल अपनी मर्जी के मुताबिक नए टैब्स को रिबन पर व्यवस्थित किया जा सकता है। लेकिन यह कार्य इतना सरल भी नहीं है। इस कार्य को सम्पन्न करने के लिए माइक्रोसॉफ्ट के ऑफिस xml को समझना जरूरी है।
रिबन को कैसे कस्टमाइज करें
एक्सेल के भीतर रिबन को कस्टमाइज करने के लिए दो तरीके हैं। एक सरल विधि है जिसके अंतर्गत यूजर बिना किसी कोडिंग के एक्सेल ऑप्शनस डायलॉग बॉक्स में कस्टमाइज रिबन सेटिंग में जाकर रिबन को कस्टमाइज कर सकता है। उसमें नए टैब को क्रिएट कर सकता है और टैग के भीतर नये ग्रुप्स बना सकता है और उन ग्रुप्स में बटन भी अप्लाई कर सकता है परंतु अधिक महत्वपूर्ण तरीका कोडिंग के द्वारा रिबन को कस्टमाइज करने से है। इस तरह रिबन को कस्टमाइज करने के लिए विजुअल बेसिक अप्लीकेशन की कोडिंग की जरूरत होती है? नहीं, ऐसा नहीं है।
एक्सेल वर्कबुक का परीक्षण
मुख्य रूप से एक्सल के रिबन को कस्टमाइज करने के लिए एक्स एम एल xml की तकनीक का ज्ञान होना चाहिए। सत्य यह है कि 2007 के वर्शन के एक्सेल और उसके बाद के जितने भी एक्सेल वर्शन है उन सभी में एक्सेल एक जीप zip फाइल के रूप में होता है जो कि ऐसे प्रत्यक्ष नहीं होता। इसका प्रत्यक्षीकरण करने के लिए हमें एक्सेल की फाइल के अंत में जेड आई पी zip नामक एक्सटेंशन लगाकर उसे जिप फाइल में बदलना पड़ता है। ऐसा करने के बाद एक्सेल वर्कबुक एक जिप फाइल के रूप में दिखाई देती है। उस जिप फाइल को डबल क्लिक करने पर उसके भीतर कई सारे फोल्डर और फाइल दिखाई देते हैं। फोल्डर के भीतर भी कई सारे फाइल होते हैं। फोल्डर व फ़ाइल की एक स्ट्रक्चर होती है जो यह निर्धारित करती है कि एक फाइल दूसरे फाइल से अथवा आपस में फाइल्स कैसे जुड़े हुए हैं। इन फाइल्स के बीच के रिलेशनशिप या संबंध को कोड के द्वारा बनाया गया होता है जिसे हम रेलस _rels नामक फोल्डर में देख सकते हैं। इस रेल्स नामक फोल्डर में रेलस .rels.xml नामक एक फाइल होता है जो वस्तुतः एक एक्सएमएल फाइल होता है। इस एक्सएमएल फाइल के भीतर हमें रिलेशनशिप्स <relationship> नामक टैग दिखाई देता है जिसके भीतर तीन मुख्य अटरीब्यूट attributes होते हैं। प्रथम आईडी ID, दूसरा टारगेट Target और तीसरा टाइप Type
जैसा कि हम जानते हैं कि प्रत्येक टैग का अपना एक आईडी होता है जो अपने आप में अद्वितीय होता है दूसरा अटट्रिब्यूट टारगेट है। टारगेट की वैल्यू रिलेशनशिप में उस फाइल को बताता है जिसके साथ संबंधित यह फ़ाइल है और तीसरा अटट्रिब्यूट टाइप है जो यह बताता है कि किस स्कीमा के अंतर्गत एक्सएमएल फाइल बना हुआ है।
कस्टम फोल्डर और फ़ाइल
एक बात ध्यान देने वाली है की रिबन को कस्टमाइज करने के लिए हमें बने हुए फोल्डर व फ़ाइल के अतिरिक्त अपना एक कस्टम फोल्डर बनाना पड़ता है। इस फोल्डर का नाम अपनी मनमर्जी से कुछ भी रख सकते हैं और उस फोल्डर के भीतर एक एक्सएमएल फाइल बनाना पड़ता है। यह xml फ़ाइल कस्टम टैग के ग्रुप्स व बटन्स को ध्यान में रखकर कोड किए जाते हैं। इस एक्सएमएल फाइल की सहायता से एक्सेल में एक से अधिक कस्टम टैब को बनाया जाता है और उसमें ग्रुप्स व बटन बनाए जाते हैं।
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