लेखक अजीत कुमार
इस लेख में मैंने अत्यंत ही सरल तरीके से वेब एपीआई के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई है। कोई भी व्यक्ति जो पहली बार वेब एपीआई के बारे में पढ़ रहा है, वह इसे पढ़ कर समझ सकता है।
वेब एपीआई क्या होता है?
वेब एपीआई के बारे में जाने से पहले यह जानना जरूरी है कि एपीआई क्या होता है। एपीआई का फुलफॉर्म एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस है। जिस तरह किसी एप्लिकेशन के यूजर इंटरफेस के द्वारा यूजर इंटरेक्शन करता है, ठीक उसी तरह, जब कोई एप्लीकेशन किसी दूसरे एप्लीकेशन के साथ इंटरेक्शन करना चाहता है अर्थात दूसरे एप्लीकेशन की सर्विस हासिल करना चाहता है तो उसे जिस इंटरफेस की जरूरत पड़ती है, उसे प्रोग्रामिंग इंटरफेस कहते हैं और इस प्रोग्रामिंग इंटरफेस के लिए, सर्वर एप्लीकेशन में प्रोग्राम के रूप में ऑब्जेक्ट्स और मेथड्स होते हैं जो क्लाइंट एप्लीकेशन के लिए इंटरफेस के रूप में काम करते हैं। यह बात हम आगे समझेंगे। सर्विस देने वाली अर्थात सर्वर एप्लीकेशन के इस फीचर को ही समग्र रूप में एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस करते हैं।
सवाल है कि किसी एप्लीकेशन को दूसरे एप्लीकेशन से इंटरेक्शन / सर्विस करने के लिए क्या करना होगा। इसके लिए वस्तुतः सर्विस प्रदाता एप्लीकेशन के फंक्शन या मेथठ का उपयोग करना होता है। जब एक एप्लीकेशन को किसी दूसरे एप्लीकेशन के किसी मेथड या फंक्शन को यूज़ करना होता है तो उसके लिए वह उस सर्विस प्रदाता एप्लीकेशन के एपीआई अर्थात एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस का उपयोग करता है। सर्विस को प्राप्त करने वाले एप्लीकेशन को क्लाइंट एप्लीकेशन कहते हैं और सर्विस देने वाले एप्लीकेशन को सर्वर एप्लीकेशन कहते हैं। इस तरह के सिस्टम को क्लाइंट सर्वर सिस्टम कहा जाता है।
उदाहरण के लिए, किसी डीएलएल डायनामिक लिंक लाइब्रेरी के भीतर कई सारे मेथडस या फंक्शनस बने होते हैं और उस डीएलएल को दूसरे एप्लीकेशन में या प्रोजेक्ट में इंपोर्ट कर अथवा उसका रेफेरेंस देकर उस डीएलएल के मेथड या फंक्शन का उपयोग कर लिया जाता है। अतः डीएलएल एक तरह का एपीआई होता है।
एक अन्य उदाहरण के रूप में, अगर कोई डेस्कटॉप एप्लीकेशन जैसे एक्सेल एप्लिकेशन किसी दूसरे एप्लिकेशन से इंटरैक्शन करना चाहे अर्थात उस एप्लिकेशन की सर्विसेज को यूज करना चाहे तो दूसरे एप्लिकेशन को अपने एप्लिकेशन के ऑब्जेक्ट्स और उसके मेथड्स को एक्सपोस करना होता है। यहाँ एक्सेल एप्लिकेशन, क्लाइंट एप्लिकेशन हुआ और दूसरा एप्लिकेशन सर्वर एप्लिकेशन हुआ। सर्वर एप्लिकेशन के ऑब्जेक्टस के एक्सपोसिंग के लिए एपीआई का उपयोग किया जाता है। एपीआई के अंतर्गत एक्सपोज़ होने योग्य ऑब्जेक्ट्स और मेथड्स होते हैं।
अभी हमने बात डेस्कटॉप एप्लीकेशन का किया। बिल्कुल इसी तरीके से जुड़ा हुआ मामला वेब एप्लीकेशन के बीच में भी हो सकता है। जब कोई एक वेब एप्लिकेशन दूसरी वेब एप्लिकेशन के साथ इंटरेक्शन करना चाहता है तो उसके लिए उसे एपीआई अर्थात एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस की जरूरत पड़ती है। एप्लीकेशन के बीच में इंटरेक्शन के लिए बने ऐसे एपीआई को वेब एपीआई कहते हैं।
जैसा कि हमने क्लाइंट सर्वर आर्किटेक्चर की बात की और यह बताया कि सर्वर अपने ऑब्जेक्ट और मेथड स्कोर क्लाइंट के सामने एक्सपोज करता है और क्लाइंट एप्लीकेशन उस ऑब्जेक्ट्स ओर मेथड को यूज करता है या कंज्यूम करता है। यहां यह बात याद रखने वाली है कि सर्वर अपने मेथड्स को एक्सपोज तो करता है परंतु उसकी इंप्लीमेंटेशन हिडन अर्थात छिपी हुई होती है।
वेब एपीआई के अंतर्गत भी जब कोई क्लाइंट एप्लीकेशन किसी सर्वर से कोई रिकवेस्ट करता है तो उसके लिए क्लाइंट एप्लीकेशन वेब एपीआई एप्लीकेशन सर्वर को युआरआई या यूआरएल भेजता है इस युआरआई के अंतर्गत ही वेब एपीआई के मेथड को एक्सपोज किया जाता है। और युआरआई के आधार पर तब वेब एपीआई एप्लीकेशन, क्लाइंट एप्लीकेशन को अपना वेब सर्विस प्रदान कर देता है।
वेब एप्लीकेशन एचटीटीपी प्रोटोकोल के अंतर्गत कार्य करते हैं और इन का कार्य मुख्य रूप से वेब सर्विसेज के रूप में सर्वर पर उपलब्ध डाटा को क्लाइंट एप्लीकेशन को भेजना होता है। क्लाइंट एप्लीकेशन वेब ब्राउज़र हो सकता है या कोई मोबाइल एप्लीकेशन अथवा इंटरनेट ऑफ थिंग्स या कोई अन्य एप्लीकेशन भी हो सकता है। जब क्लाइंट एप्लीकेशन के पास डाटा जाती है तब वह डाटा क्लाइंट एप्लीकेशन अपनी जरूरत के अनुसार रिप्रेजेंट कर देती है।
अब आपको यह जानना जरूरी है कि जितने भी वेब एप्लीकेशन होते हैं वह किसी न किसी प्रोटोकॉल पर आधारित होते हैं। आमतौर पर जो भी वेब प्रोटोकॉल प्रचलित है वह एचटीटीपी प्रोटोकोल है। इसके अलावा वेब के अंतर्गत एफटीपी प्रोटोकोल, एसएमटीपी प्रोटोकोल, टेलनेट, गोफर, POP, UDP, IP, TCP इत्यादि अनेको प्रोटोकोल भी है लेकिन लगभग 70 से 80% वेव प्रोटोकॉल्स एचटीटीपी प्रोटोकोल है अर्थात जितने भी वेब एप्लीकेशंस होते हैं उनमें एचटीटीपी प्रोटोकोल बहुतायत है। ऐसे वेब एप्लिकेशन को हम एचटीटीपी आधारित एप्लिकेशन कहते हैं। इसके अलावा एफटीपी एप्लीकेशन, एसएमटीपी एप्लीकेशन और अन्य दूसरे प्रोटोकॉल पर आधारित एप्लीकेशन भी बनते हैं लेकिन हम अपना ध्यान एसटीटीपी आधारित वेब एप्लीकेशन पर केंद्रित करेंगे क्योंकि ऐसे वेब एप्लिकेशन ही मुख्य रूप से उपयोग होते हैं।
वेब एप्लिकेशन को समझने के लिए अथवा उस एप्लीकेशन की प्रोग्रामिंग करने के लिए एचटीटीपी प्रोटोकोल का ज्ञान बहुत जरूरी है, खासकर वेब एपीआई को बनाने के लिए। वेब एपीआई में एचटीटीपी प्रोटोकोल से जुड़े कई सारी बातों का ध्यान रखना होता है।
जब हम वेब एप्लिकेशन की बात करते हैं तो उसमें रेस्टफुल वेब एप्लिकेशन की बात आती है। रेस्टफुल वेब एप्लीकेशन ऐसे वेब एप्लीकेशन है जो रेस्ट के सिद्धांत पर आधारित है। रेस्ट का सिद्धांत क्या है? रेस्ट का सिद्धांत कोई तकनीक या टेक्नोलॉजी नहीं है। बस यह एक सैद्धांतिक आधार है जिस आधार पर कोई भी वेब एप्लीकेशन बनता है। कोई जरूरी नहीं कि सारे ही वेब एप्लीकेशन रेस्ट के सिद्धांत पर आधारित हो लेकिन जो भी वेब एप्लिकेशन रेस्ट के सिद्धांत पर आधारित होते हैं उनको हम रेस्टफुल वेब एप्लिकेशन कहते हैं।
अब कई बार ऐसा भी होता है कि कोई वेब एप्लिकेशन रेस्ट के सारे सिद्धांतों का अनुपालन न किया गया हो, ऐसे वेब एप्लिकेशन को हम पार्सियल रेस्ट एप्लीकेशन या सिंपली रेस्ट एप्लीकेशन कह सकते हैं ना कि उसे रेस्टफुल वेब एप्लीकेशन कहेंगे। रेस्टफुल वेब एप्लीकेशन में पूर्णरूप से रेस्ट के सिद्धांतों का अनुपालन किया जाता है।
रेस्ट का सिद्धांत क्या है?
REST रेस्ट का शाब्दिक अर्थ है Representational State Transfer
अब हम देखेंगे कि रेस्ट का सिद्धांत क्या है। रेस्ट का सिद्धांत यह कहता है कि जो वेब एप्लीकेशन है उसमें जो सिस्टम बना है वह सिस्टम क्लाइंट और सर्वर आधारित सिस्टम है अर्थात इस सिस्टम में दो हिस्से हैं एक क्लाइंट हिस्सा दूसरा सर्वर हिस्सा । क्लाइंट जो है वह सर्वर से किसी सर्विस के लिए आग्रह करता है और सर्वर उस आग्रह या रिक्वेस्ट को पूरा प्रोसेस करने के बाद क्लाइंट के पास भेज देता है। क्लाइंट सर्वर आर्किटेक्चर को रेस्टफुल वेब सर्विस में जगह दिया गया है। क्लाइंट के रूप में कोई भी user-agent हो सकता है जैसे वेब ब्राउजर और सर्वर के अंतर्गत कोई भी वेब सर्वर जैसे कि आईआईएस सर्वर, अपाचे सर्वर इत्यादि हो सकता है। यह तो पहली खूबी हुई रेस्टफुल वेब सर्विस की जिसमें क्लाइंट सर्वर आधारित सिस्टम को मान्यता दी गई है। दूसरी बात आती है स्टेटलेसनेस की।
स्टेटलेसनेस की खूबी Stateless
स्टेटलेसनेस का मतलब है कि सर्वर क्लाइंट के भेजे गए किसी भी रिक्वेस्ट डाटा को अपने पास स्टोर करके नहीं रखता है। स्टेट अर्थात डाटा को सर्वर में स्टोर करके नहीं रखा जाता है इसके लिए सेसन या कुकी ऑब्जेक्ट जैसी चीजों का प्रयोग नहीं होता है। आमतौर पर एमवीसी एप्लीकेशन में स्टेट मैनेजमेंट के लिए सेशन ऑब्जेक्ट और कुकी ऑब्जेक्ट का उपयोग किया जाता है इन ऑब्जेक्ट की सहायता से एमवीसी एप्लीकेशन स्टेट मैनेजमेंट करता है जबकि वेव एपीआई के अंतर्गत स्टेट मैनेजमेंट नहीं किया जाता है।
क्लाइंट अपनी रिक्वेस्ट को सर्वर के पास भेजता है सर्वर उस रिक्वेस्ट को प्रोसेस करता है और रिक्वेस्ट को प्रोसेस करने के बाद रिस्पांस को क्लाइंट के पास वापस भेज देता है क्लाइंट की किसी भी डाटा या स्टेट को अपने पास सर्वर नहीं रखता है।
यूनिफॉर्म इंटरफ़ेस की खूबी
रेस्टफुल आर्किटेक्चर के अंतर्गत तीसरी खूबी यूनिफॉर्म इंटरफ़ेस की होती है यूनिफॉर्म इंटरफेस से अभिप्राय क्या है देखिए जब यूज़र user-agent की सहायता से रिक्वेस्ट को सर्वर के पास भेजता है तो उसके लिए वह यूआरआई या यूआरएल का उपयोग करता है। रेस्टफुल वेब आर्किटेक्चर के अंतर्गत यूआरआई या यूआरएल बहुत ही इन्फॉर्म पैटर्न में लिखे जाते हैं जिसके कारण किसी किसी भी आम व्यक्ति को समझना या यूज करना आसान होता है। उदाहरण के लिए निम्न यूआरएल को देखिए
api/Employee
api/Employee/1
इन यूआरएल को देख कर सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है की क्लाइंट अपने सर्वर से क्या रिक्वेस्ट कर रहा है।
कैश की खूबी Cacheable
रेस्टफुल आर्किटेक्चर की एक और भी खूबी होती है वह खूबी है केस प्रॉपर्टी। इससे अभिप्राय यह है कि सर्वर के द्वारा भेजे गए रिस्पांस डाटा को कैश मेमोरी में यूजर एजेंट द्वारा निश्चित अवधि के लिए स्टोर करके रखना ताकि यूज़र भविष्य में उस डाटा का पुनः उपयोग कर सके। इसका फायदा यह होता है क्लाइंट को उसी रिक्वेस्ट को दोबारा सर्वर के पास नहीं भेजना होता है जिसके कारण सर्वर पर लोड नहीं पड़ता, बैंडविड्थ भी सही रहता है, एप्लिकेशन की एफिशिएंसी भी सही रहती है इत्यादि। अतः एप्लीकेशन को उपयोगिता भी बढ़ जाती है।
इस तरीके से हमने रेस्ट की चार खूबियों या चारित्रिक विशेषताओं को देखा। आगे हम देखेंगे की किस तरह इन विशेषताओं का उपयोग माइक्रोसॉफ्ट के एएसपी डॉट नेट वेब एपीआई में होता है।
भाग २
जैसा कि हमने पिछले लेख में देखा कि वेब एप्पलीकेशन और वेब एपीआई एप्पलीकेशन के लिए एचटीटीपी प्रोटोकोल का ज्ञान होना जरूरी है। इस लेख में हम एचटीटीपी प्रोटोकोल के बारे में देखेंगे जितना ज्ञान हमें वेब एपीआई के लिए आवश्यक है। एचटीटीपी प्रोटोकॉल का उपयोग इंटरनेट पर कम्युनिकेशन प्रोटोकोल के रूप में किया जाता है। इंटरनेट से जुड़े एप्लिकेशन एचटीटीपी प्रोटोकॉल का पालन आपस मे सम्प्रेषण अर्थात कम्युनिकेशन के लिए करते हैं।
जैसा कि हमने देखा कि क्लाइंट सर्वर मॉडल के अंतर्गत क्लाइंट के द्वारा सर्वर को मेसेज प्रेषित किया जाता है। सम्प्रेषण की शुरुआत सदैव क्लाइंट एप्लिकेशन द्वारा ही किया जाता है। सर्वर के द्वारा क्लाइंट के मेसेज का रिप्लाई प्रेषित किया जाता है। इन्फॉर्मेशन या डाटा आदान प्रदान के लिए क्लाइंट सर्वर के बीच में संप्रेषण होता है। इसे डाटा कम्युनिकेशन या क्लाइंट सर्वर कम्युनिकेशन कहते हैं। मैसेज की फॉर्मेट के बारे में हम आगे समझेंगे, वेब एप्लिकेशन के अंतर्गत मैसेज के फॉर्मेट को समझना बहुत ही आवश्यक है।
एचटीटीपी का फुलफॉर्म हाइपरटेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकोल है। इसका शाब्दिक अर्थ हुआ कि हाइपरटेक्स्ट को ट्रांसफर करने के लिए उपयोग किए जाने वाला प्रोटोकोल। इसमें कुछ बातें समझने वाली है। सबसे पहले यह समझना है कि हाइपरटेक्स्ट होता क्या है और दूसरी बात यह समझना है कि प्रोटोकॉल क्या होता है।
हाइपरटेक्स्ट का अभिप्राय क्या है?
देखिए, इंटरनेट के उदय के समय एचटीएमएल का विकास हुआ। एचटीएमएल जिसका फुलफॉर्म है हाइपरटेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज। इस लैंगुएज का विकास इंटरनेट के अग्रदूत टीम बर्नर ली द्वारा इंटरनेट पर कम्युनिकेशन माध्यम के रूप में हुआ था। इंटरनेट के शुरुआती दिनों में कम्युनिकेशन के दौरान केवल टेक्स्ट का ही आदान प्रदान होता था और टेक्स्ट के बीच के संबंध को स्थापित करने के लिए लिंक बने होते थे जिनको हाइपरलिंक कहते हैं। ऐसे टेक्स्ट को हाइपरटेक्स्ट कहा जाता था जिनके द्वारा विभिन्न टेक्स्ट के बीच में संबंध स्थापित होता था। इसे जुड़ा हुआ एक और भी शब्द है हाइपरटेक्स्ट रीफरेंस जिसे संक्षेप में एचआरईएफ कहते हैं। हाइपरटेक्स्ट रीफरेंस के द्वारा किसी लिंक को क्लिक करने पर किस दूसरे टेस्ट पर पहुंचा जा सकता है उसका रिफरेंस एचआरईएफ के अंतर्गत दिया जाता है। इस तरह अरैखिक सम्प्रेषण को करना सम्भव हुआ।
शुरुआती दिनों में वेब कम्युनिकेशन के अंतर्गत केवल टेक्स्ट का ही आदान-प्रदान कम्युनिकेशन मीडियम के रूप में होता था। परंतु जैसे जैसे इंटरनेट का विकास हुआ तब ना केवल टेक्स्ट बल्कि ऑडियो वीडियो और अन्य मीडिया का भी उपयोग कम्युनिकेशन के रूप में होने लगा। अब हाइपरटेक्स्ट की जगह हाइपरमीडिया शब्द का प्रयोग किया जाने लगा परंतु एचटीटीपी प्रोटोकॉल के अंतर्गत हाइपरटेक्स्ट वर्ड को ना बदला गया जबकि होना यह चाहिए था कि हाइपरटेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकोल को हाइपरमीडिया ट्रांसफर प्रोटोकॉल कहा जाता परंतु पुराना एक्रोनीम ही प्रचलित रहा क्योंकि एचटीटीपी शब्द अत्यंत ही रूढ़ हो चला था और इसी कारण अब भी एचटीटीपी को हाइपरटेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकोल ही कहा जाता है।
प्रोटोकॉल का अभिप्राय क्या है?
एचटीटीपी के अंतर्गत दूसरा शब्द महत्वपूर्ण शब्द प्रोटोकॉल है। प्रोटोकॉल से अभिप्राय लिखित और अलिखित नियम कानूनों अथवा शर्तों से होता है जिसका पालन किसी प्रक्रिया के अंतर्गत किया जाता है। उदाहरण के लिए, संप्रेषण प्रक्रिया में जिन नियम कानूनों का पालन किया जाता है, वे संप्रेषण प्रोटोकॉल है। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से बातचीत करना चाहता है तो उसके लिए उसे कई सारे प्रोटोकॉल का पालन करना होता है। जैसे दोनों व्यक्ति के बीच प्रयोग किए जाने वाले संप्रेषण की भाषा समान होनी चाहिए। साथ ही, अगर पहला व्यक्ति कोई बात कहता है तो दूसरे व्यक्ति को उसकी बात का जवाब देना जरूरी होता है तभी संप्रेषण हो सकता है। इसका अर्थ यह है कि संप्रेषण के अंतर्गत प्रेषक और रिसीवर दोनों की एक्टिविटी जरूरी है। प्रेषक मैसेज भेजता है और रिसीवर उस मैसेज पर अपनी प्रतिक्रिया प्रेषक के पास भेज देता है। अगर यह दोनों बातें ना हो तो कम्युनिकेशन अर्थात संप्रेषण संभव नहीं होगा। तीसरी एक और भी महत्त्वपूर्ण बात है, वह यह है कि दोनों के बीच में कम्युनिकेशन के दौरान रिक्वेस्ट रेस्पांस की समय अवधि में फर्क ज्यादा नहीं होना चाहिए। कहने का अर्थ यह है कि जब प्रेषक का मैसेज रिसीवर के पास पहुंचता है तो रिसीवर एक समय अवधि के भीतर प्रेषक के पास रिप्लाई दे देता है। अगर ऐसा ना हो तो संप्रेषण संभव नहीं होगा।
एचटीटीपी रिक्वेस्ट और एचटीटीपी रिस्पांस
ऊपर जिन तीन बातों का उल्लेख उदाहरण में किया गया है बिल्कुल यही बात इंटरनेट पर क्लाइंट सर्वर एप्लिकेशन के बीच में संप्रेषण के दौरान होता है। जब कोई क्लाइंट एप्लीकेशन सर्वर एप्लीकेशन के पास कोई मैसेज भेजता है तो सर्वर एप्लीकेशन उस मैसेज पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है और दोनों client-server के बीच में कम्युनिकेशन किए लिए प्रयोग किए जाने वाले लैंग्वेज समान होते हैं। क्लाइंट जब मैसेज को सर्वर के पास भेजता है तो उसे रिक्वेस्ट कहा जाता है और सर्वर उस रिक्वेस्ट पर रिप्लाई करता है तो उसे रिस्पांस कहा जाता है। एचटीटीपी प्रोटोकोल के अंतर्गत इस तरह के रिक्वेस्ट और रिस्पांस को एचटीटीपी रिक्वेस्ट और एचटीटीपी रिस्पांस कहा जाता है और ऐसे मैसेज को एचटीटीपी मैसेज कहा जाता है।
एचटीटीपी कॉन्टेक्स्ट
एचटीटीपी प्रोटोकॉल के अंतर्गत क्लाइंट और सर्वर के बीच में मैसेज संप्रेषण के दौरान एक वातावरण तैयार होता है जिसको एचटीटीपी कॉन्टेक्स्ट कहते हैं। एचटीटीपी कॉन्टेक्स्ट के अंतर्गत क्लाइंट और सर्वर से सम्बंधित कई बातें आ जाती है। उदाहरण के लिए, क्लाइंट किस तरह के ब्राउज़र या user-agent का उपयोग कर रहा है। मैसेज को भेजने के लिए किस एचटीटीपी VERB का उपयोग किया गया, रिक्वेस्ट के अंतर्गत किस भाषा में, किस एन्कोडिंग में डाटा की प्राप्ति के लिए रिक्वेस्ट किया गया इत्यादि। एचटीटीपी Verb के बारे में आगे चर्चा की गई है। इस तरीके से एक सर्वर के अंतर्गत सर्वर ने किस तरह का किस टाइप का डाटा रिप्लाई किया उसके भी सब टाइप इत्यादि कई बातों का संबंध एचटीटीपी कॉन्टेक्स्ट से होता है।
मैसेज की संरचना
एचटीटीपी रिक्वेस्ट मैसेज
एचटीटीपी रेस्पॉन्स मैसेज
एचटीटीपी क्रियाएँ HTTP Verbs
एचटीटीपी क्रिया से अभिप्राय ऐसे ऑपरेशन से है जिसके क्रियान्वयन के लिए क्लाइंट एप्लीकेशन द्वारा सर्वर एप्लीकेशन से आग्रह किया जाता है। जब क्लाइंट एप्लीकेशन द्वारा मैसेज भेजा जाता है तब मैसेज में इस क्रिया का उल्लेख होता है।
GET - इस ऑपरेशन का उपयोग वेब सर्वर से डेटा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
POST - इस ऑपरेशन का उपयोग वेब सर्वर पर डेटा का एक नया आइटम बनाने के लिए किया जाता है।
PUT - इस ऑपरेशन का उपयोग वेब सर्वर पर डेटा के किसी आइटम को अपडेट करने के लिए किया जाता है।
PATCH - इस ऑपरेशन का उपयोग वेब सर्वर पर डेटा के एक आइटम को अपडेट करने के लिए किया जाता है, जिसमें निर्देशों के एक सेट का वर्णन किया जाता है कि आइटम को कैसे संशोधित किया जाना चाहिए। नमूना आवेदन में इस क्रिया का उपयोग नहीं किया जाता है।
DELETE - इस ऑपरेशन का उपयोग वेब सर्वर पर डेटा के किसी आइटम को हटाने के लिए किया जाता है।
अंतिम बार अद्यतन ८/९/२०२१
© अजीत कुमार, सर्वाधिकार सुरक्षित।
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